सांप्रदायिकता बनाम राजनीति
भारत एक ऐसा देश जहां के लोग आजादी से पहले तक घुलमिल कर एक परिवार की तरह रहते थे, जिनका आपस में लड़ना तो दूर बहस का भी नामोनिशां नहीं था। एक बड़े परिवार की तरह रह रहे लोगों में आपसी फूट का शिलशिला आजादी के पहले अंग्रेजो द्वारा शुरू किया गया था, बाद में राजनेताओं ने इसको अपने राजनीतिक उद्धेश्य को प्राप्त करने के लिए हथियार बना दिया, जो रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
भारत को आजाद हुए 68 साल होने को आये है, पर राजनेताओं की घटिया सोच और वोट बैंक की राजनीति ने आम आदमी को हमेशा-हमेशा के लिए बाँट दिया है।
आम भारतीय कभी-भी आपस में लड़ना नहीं चाहता है, उन्हें ये घटिया किस्म के नेता लड़वाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे है, इन नेताओं ने कभी अपने हित से ऊपर जाकर ना ही सोचा है ओर ना ही कभी इस मसले की ओर ध्यान दिया है।
आज के इस युग में जब लोगों को विकास की सख्त जरुरत है, वहाँ इनके विकास की चिंता किसी को नहीं है, राजनेता तो इस नियम पर चल रहे है कि 'बस वोट हो गये, अपने वादे भी खत्म हो गए।'
एक तरफ राजनेता आतंकवादियों और अलगाववादियों पर मेहरबान है, दूसरी तरफ यह भारतवर्ष सांप्रदायिकता की आग में जल रहा है। कोई हिंदुओं को 15 मिनट में खत्म करने की धमकी देता है तो कोई मुसलमानों को खदेड़ने की, इतना सब कुछ होने के बावजूद आम भारतीय आज भी शांत है, वो सिर्फ ओर सिर्फ इन राजनेताओं के बहकावे में आकर गलत कदम उठाने को मजबूर है।
आज भारत में 30 साल बाद एक स्थिर सरकार आई है, जिससे लोगों में सकारात्मकता की अलख जगी है, पर यह सरकार कुछेक घटिया सोच वाली राजनीतिक पार्टियों की वजह से जनता के हित में फैसला नहीं कर पा रही है।
मेरा समस्त देश के नागरिकों से हाथ जोड़कर आग्रह है कि हम सब आपस में मिलजुल कर रहे, इन राजनेताओं की लड़ाने की प्रकृति बन गई है, इस ओर ध्यान ना देकर इस भारतवर्ष का विकास करें। हम सभी मिलकर यह बीड़ा उठाएँ तो, इस देश को वापिस सोने की चिड़िया बनने से कोई नहीं रोक सकता।
"सांप्रदायिक सौहार्द बनाकर रहना, हम सभी भारतीयों का आधार है।" इस आधार को बनाकर रखना हम सभी नागरिकों का दायित्व है।
एक ओर छोटे से लेख के साथ आप सभी को "जय हिन्द"॥
आपका अपना
जीवन दान चारण
आरंग
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