दोहे
सुण समदर सौ जोजना, लीक छोड़ मत जाह।
छोटा छीलर ऊझल़ै, तै घर रीत न आह।।
अर्थ:-
हे! सौ योजन तक फैले समुद्र तू अपनी सीमा मत लांघ। अपनी लीक से आगे मत जा। छोटे पोखर तालाब ही छलकते है क्योंकि वह अधूरे है। छलकना तुम्हारा स्वभाव नहीं। तुम्हारे घर की रीति या परंपरा नहीं है।
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