कांगा

कापी पेस्ट by पुर्व विधायक  तरुण राय कागा की वाल से 

       जय माँ दैवल ।।
श्री देवल मां जन्म स्थान अखेश्वर तालाब गांव माड़वा तह़स़ील पोकरण जैसलमेर चौहान वंश का परम्परागत ठिकाना जो पृथ्वीराज चौहान के कुल से सम्बंधित थे का एक बालक नाम धर्म जो कि जब देवल की शादी सिंध में खारोड़ा जागीर जो देथा चारण समाज की एक मात्र थी के साथ चला जाता है को मां देवल ने अपने अलोकिक पृथम चमत्कार के तहत धर्म को कागा (कौवा )बनाकर अपनी बेल गाड़ी पर बिठा दिया था की पहली पलायन यात्रा प्रारम्भ होती है।बीच रास्ते में रात को जैसलमेर के तत्कालीन महाराजा श्री घड़सी की असाध्य बीमारी पीठ में भयानिक अफूंटी एक प्रकार की गांठ को देवल माता द्वारा ठीक करना दूसरा करिश्मा था से ख़ुश होकर महाराजा ने मां को अठारह वर्ण बख़शीश कर सोना चांदी हीरे जवाहरात अशरफ़ियों से नवाज़ा गया।
श्री धर्म चौहान एक होनहार बहादुर चतुर ईमानदार वफ़ादार युवा थे जिसने खारोड़ाराय जागीर का सारा कारोबार अपने हाथों में ले रखा था से कुछ को बात रास नहीं रही आई किसी साज़िश के तह़त मृत गाय के बछड़े को हाथ लगाने के आरोप में चौहान से मेघवाल बिना दिया जो उस समय में एसी ज़बरदस्ती दण्ड बहस्कृत व्यवस्था आम थी चौहान से कागा नाम दे दिया ओर मां देवल ने नहीं चाहते हुए भी एक काला धागा गले में बांध कागा कह कर सम्बोधित किया जो पृथम चमत्कार में कागा पक्षी बनाया था एंव वरदान दिया कि आपका परिवार सच्चे मन से मेरा स्मर्ण करेगा मनोकामना पूर्ण होगी यह सर्वविदित है जो अमरकोट के राणा एंव सोढ़ा आज तक कांगा को देवी पुत्र भी कहते है कालांतर में मेघवाल समाज को हेय दृष्टि से देखने से कागा की बजाय कागिया छोटे नाम से कहने लगे जो बाल में तरूण राय ने राजस्थान राज पत्र में कागिया की बजाय कागा प्रकाशित कराया गया तत्पश्चात शिक्षित युवा वर्ग ने कांगा लिखना शुरू किया जो गर्व की बात है अपनी एतिहासिक पहचान बरक़रार रख रहे है जिन पर मुझे नाज़ है।
श्री धर्म कागा की शादी महाराजा घड़सी द्वारा दिये दहेज में जोगू मेघवाल के घर रचाई गई।
तत्कालीन राणा अमरकोट एंव खारोड़ा देथा चारण के मध्य किसी बात पर विवाद होने कारण खारोड़ा छोड़ना पड़ा फलस्वरूप अठारह वर्णों के साथ कागा कुनबे ने भी देथा परिवार का भरपूर साथ दिया ओर धाट के लिये रवाना हुई बीच में पहला पड़ाव गांव राणिहार रहा लेकिन वहां खारा पानी के कारण चंद दिनों के बाद एक नई बस्ती बसाई जहां जो बाद में कमा नाम के कागा से कमड़हार गांव बना लम्बे अंतराल के बाद एक अकल्पनिक घटंदा घटित हुई कि श्री कमा जो कागिया कुटम्ब का प्रमुख मुखिया था उस समय ह़ुक़ा तम्बाकू का सेवन करता था लेकिन संयोगवश जब सुबह उठकर अपनी धर्मपत्नी को आग के अंगारे लाने को कहा परंतु आग कहीं भी नहीं मिली चूंकि उस समय आग को अपने घर के चूल्हों में छुपा कर सुरक्षित रखा जाता था दिया सलाई माचिस का ज़माना नहीं था पत्थरों को अथा लकड़ी से घृष्ण कर आग जलाई जाती थी।
श्री क्या बहुत ही गुस़्स़े में आकर अपनी पत्नि को बुलाया ओर मिल्या बीवी ने आमने सामने बेठ लकड़ी से घृष्ण से आग जलाई ओर ह़क़ा पीनी के बाद टोपी से अंगारों से पड़ोसी में चारणों के घरों में उडेल दिये जिससे सब बस्ती जल कर राख हो गई उस घटना पर चारणों द्वारा रचित दोहे उल्लेखित है।
कमे करयो चांद्रणो चहुंदिश हुओ चावो।
घर बाल्या चारणां था रह्यो राली न गाभो।
कमे बसाई कमड़हार वंश चौहान वीर।
माता देवल मेहर करी प्रसन्न रामा पीर।
पकेट ऊंट पलाणया नहायो गंगा नीर।
यह वृतांत इतिहास के पन्नों से उद्धरित नहीं पीढ़ी दर पीढ़ी बड़े बूढ़े बुज़र्गों द्वारा किंवदंतियों पर आधारित सटीक है।
कमड़हार गांव आगज़नी से स्वाहा होने के बाद एक ओर पलायन शुरू हुआ जो छाछरो के पास पड़ाव में यह त़य्य हुआ कि अपनी सुविधानुसार अपने नये गांव बसाये जायें फ़ेस़ला हुआ जिसमें अधिकांश चारणों ने नया गांव मिठड़िओ कीतारी चारणोर बसाये गये वहां से फिर कई गांवों में जाकर बस गये लेकिन वेठा वेंदा चारणव क्या कागिया ने जांच्यो की बग़ल में दोनों ने बेरियां खोद ( जल स्रोत )कर वेडे का पार नाम दिया ओर बाद में रेवेन्यो तक जुगता चारण अस्तीत्व में आया परंतू आमजन जन की बोली में गांव कागिया से प्रसिद्ध हो गया जहां देवल मां का बड़ा स्थान है।

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