चारण सपूतों की प्रशंसा में रचित कतिपय सुभराज के दोहे।

चारण सपूतों की प्रशंसा में रचित कतिपय सुभराज के दोहे।

भाग सप्तम

दुरसा डूंगंरडे़ह,
 कुण काला छाया करे। 
आढा आपांणेह, 
महर करीजै मेह उत।।  

धन रांणो धिन एकलिंग, 
धन मेवाडो़ देस। 
धन जैमल दधवाड़ियो, 
जिण घर खीम नरेस।। 

गांगा गढपतियाह,
धरपतिया कविया धणी।
चलै न चक्रपतियाह, 
रीत तिहारी रूपउत।। 

सविया कविया सांम का, 
विजैराम का गीत। 
परवरिया सारी पृथ्वी, 
ऊगै ज्यां आदीत।। 

सिरै बिराई सांसणां, 
कवियां समो न कोय। 
ब्रवै रिजक दत वीदगां,
जग बखांणै जोय।। 

बूंदी गांगो बिरद पत, 
मझ खीमो मैवाड़। 
मुरधर भीमो आसियो, 
धरा वनो ढूंढाड।। 

कसूंबलै बांको कवि, 
खारोड़ै  खूमांण। 
ऊजल़ नाथो ऊजलां,
 मुरधर जैत मथांण।।

अभमल सरीखा राजवी, 
सेर जिसा अमराव। 
हुवा नही कोइ होवसी, 
करन जिसा कविराव।। 

करना रो जगपत कियो, 
कीरत काज कुरब्ब। 
मन जिण धोखो ले मुवा, 
साह दिलीस सरब्ब।। 

पगां न बळ पतसाह, 
जीभां जस बोलां तणो। 
सुण हो अकबर साह,
(म्हे तो) बैठा ही बैठा बोलसां।। 

कवि नरहर गीता कही,
 सब गुण मांही समात। 
ज्यां हसती की खोज में, 
सबै खोज मिळ जात।। 

सतरै सै सित्ततरै, 
पुष्कर तीरथ पास। 
मिळियो वैकुंठ मोंयने, 
हरि सूं नरहरि दास।। 

जाझा जंगळ झाड़ियां, बोरड़ियांह विसेस। 
अलूनाथ तपियो उठै, 
उण मंदिर आदेस।। 

अंबखास अचरज करे, 
भरै अकब्बर साख। 
सवा लाख बगसै लखा, 
हम बगसै इक लाख||
दासौडी गिरधर गुणी, 
भारौडी़ हिमतेस। 
नाथूसर गज नीपजै, 
नरपत खाण नरैस।।

संकलन 
मोहन सिह रतनू, चौपासनी

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