दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या
हमारे समाज में आज के समय में सबसे बड़ी समस्या दहेज की है जो उस भारतीय संस्कृति पर एक दाग है जिसमें एक स्त्री को देवी के बराबर मान्यता प्राप्त है और उसकी पूजा की जाती रही है।
पर अब जो चल रहा है वो सबसे दुखदायक है क्योंकि इसमें लगभग हर प्रकार का परिवार सम्मिलित है भले ही वो कितना बड़ा धनाढ्य हो या भले कितना ही गरीब, उन परिवारों की अब यह परंपरा बन गई है कि हमारा बेटा आइएएस है, आइपीएस है, डॉक्टर है या फिर अन्य वो अपने उस लाड़ले की सगाई के लिए हजारों शर्ते बनाते है और उन शर्तों को बेचारे उन लड़की वालों के सामने रखते है, जो उस कुंवर साहब को अपनी लाड़ली बिटिया का हाथ सौपने के लिए इस आश के साथ आयें है कि हमारी बिटिया को एक अच्छा वर मिले उसकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण हो, वह सुख रहे। जब वे उस सूची को देखते है जिसमें उस लड़के के माँ-बाप ओर अन्य रिश्तेदारों ने अपने लाड़ले का भाव लगाया है या तो वे अपने रास्ते वापस लौट जाते है या फिर कोई बिटिया वाला भी बड़ा आदमी है तो उस सूची में प्रकाशित प्रत्येक तथ्य को स्वीकार कर लेता है क्योंकि वो खुद एक बड़ा धनाढ्य है।
पर इसमें भी मरता बेचारा गरीब ओर मध्यमवर्गीय है क्योंकि उसके पास इतनी अकूत संम्पत्ति नहीं होती है कि वह ऐसे लड़के के परिवार की उस सूची में दी गई मनोकामनाएँ पूर्ण कर सके।
प्रत्येक बेटी के माता- पिता की यह आश होती है कि उसकी बेटी की भी किसी आईएएस या फिर आइपीएस से शादी हो पर जब वो समाज में फैले दहेज रूपी रोग के बारे में सुनते है कि उस परिवार में भी यह रोग फैल चूका है वो बेचारे पहले ही अपना रास्ता बदल देते है ओर उनके सपनो पर पानी फिर जाता है।
यह सब होने के बाद भी यदि किसी कन्या की शादी ऐसे परिवार में हो भी जाती है तो वो उस देवी को इतना प्रताड़ित करते है कि या तो वह अपना अंत कर लेती है या फिर किसी का पिता जिसके पास कुछ पैसे है तो उसको बेचारी को प्रताड़ित करते है ओर कहते है कि तेरे बापू के पास पैसे बहुत है जाके लेके आ हमारी बेटी की शादी है, हमारे घर में ए.सी. लगानी है यह काम करना है वह काम करना है आदि।
आज भारत देश में प्रत्येक साल हजारो की संख्या में बेचारी स्त्रीयाँ इस सामाजिक अभिषाप के कारण अपना जीवन खत्म कर देती है या फिर कोर्ट-कचहरी के चक्कर पड़कर कुछ हक पाकर अपनी पूरी जिन्दगी नर्क बना देती है जिसमें उसकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं होता है।
इस समस्या का जड़ से समूळ नाश करने के लिए सरकारी ओर सामाजिक स्तर पर अनेक कानून ओर संस्थाएँ चल रही है पर सरकारी तंत्र का भी उन धनाढ्य परिवारों की जेब पर चलने की वजह से जितना परिणाम आना चाहिए उतना नही आया है।
इसी एक सामाजिक समस्या के साथ में सभी दोस्तों, वरिष्ठ नागरिकों और माताओं से अपील करता हूँ कि भगवान के लिए इस प्रकार की समस्या को जड़ से समाप्त करें ओर भारतीय परिवारों में व्याप्त पारिवारिक कलह को समाप्त करने में हो सके जितना अपना सहयोग दें क्योंकि जब एक बेटी का परिवार टूटता है ना तब या तो उस बेटी को पता चलता है या फिर उसके माता-पिता को।
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