मिडिया का दोहरा चेहरा

भारत जैसे देश में प्रति दिन लाखों-करोड़ो पत्र-पत्रिकाएँ छपती है ओर ना जाने कितने न्यूज़ चैनल है जो खबरे छापते है, लेकिन पिछले 2-3 साल से देखा जाएँ तो जनमानस से जुडी हुई खबरों ओर मुद्दो में जबरदस्त कमी आई है। क्योंकि इन मिडिया घरानों का कार्य अपने पेशे को पेशे के रूप में न चलाकर, ज्यादा से ज्यादा धन की उगाही करना रह गया है। आज इलेक्ट्रॉनिक्स मिडिया के लगभग प्रत्येक चैनल का हाल यह है कि वो दिन के चौबीस घंटे में औसतन 16 घंटे विज्ञापन दिखाता है ओर सिर्फ 8 घंटे की न्यूज़। और ऐसा ही हाल प्रिंट मिडिया का है। यदि किसी पेपर में 24 पेज है तो उसमे से आधे से ज्यादा पर विज्ञापन ओर बाकी पर न्यूज़ आती है।
मै उन मिडिया समूह के मित्रों से पूछना चाहता हूँ कि, ' क्या आपने यह सोचकर अपना मिडिया हाउस खोला था कि कुछ समय तक तो लोगों को नई-नई न्यूज़ दिखाकर मुर्ख बनाते रहेंगे और जब अपना मिडिया हाउस हर जगह प्रचलित हो जायेगा तो उसके बाद जनहित के मुद्दे तो न्यूज़ में से कम कर देंगे और विज्ञापन दिखवाना शुरू कर देंगे।
आज देख़ो तो हर मिडिया समूह के मालिक-मालकिन के पास लाखों-करोड़ो की आलिशान गाड़िया है, मुंबई जैसी सिटी के पॉश रहवासी इलाकों में बहूत बड़े-बड़े बंगले है। इनकी संताने बड़ी-बड़ी नामचीन स्कूलों में पढ़ती है।
यह सब पैसे के बिना मूमकिन नहीं है।
आज देखा जाये तो न्यूज़ की प्रामाणिकता भी डूब सी गई है पहले दिन तो भयंकर रिपोर्टिंग करते है 2-3 दिन में उस न्यूज़ का अंत हो जाता है भले ही वो मामला जनहित से क्यों ना जुड़ा हुआ हो सब एक साथ शांत हो जाते है। और यदि कोई उलूल-जुलूल मामला है तो पूरा दिन उस पर अपना सर पिटते रहते है क्योंकि अपने चैनल की कहीं TRP ना गिर जाएं।
अपने देश की जनता का मिडिया से लगभग विश्वास उठ गया है वो अब सोशल मिडिया की और देखने लगी है।

मै आप सभी मिडिया वाले मित्रों से आग्रह करता हूँ कि मिडिया लोकतंत्र का एक भाग है जितनी आजादी आज मिडिया को भारत में दी गई है वैसी आजादी और कुछ ही देशो में दी हुई है। इस आजादी का उपयोग धन उगाही में ना करके जनहित के मुद्धे उठाने में करों जिससे जनता को सरकार की जनहित में प्रसारित की गई योजनाओं का लाभ मिल सके ओर कोई बेकसूर आदमी किसी मामले में ना फँसे।

इसी एक और छोटे से लेख
के साथ
आपका साथी
जीवन दान चारण

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